वेब श्रृंखला और नैतिकता की राजनीति में ’’स्त्री’’- एक आलोचनात्मक विश्लेषण 

रजनी, 
Ph.D शोधार्थी,
राजनीति विज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय
ईमेल  riya7116@gmail.com,
संपर्क  9716452972

सार

नैतिकता की राजनीति से आषय आपके लिए एक पैमाना तय कर देने से है, जहां आपको बताया जाता है कि आपको कैसे जीवन व्यतीत करना है, आपका व्यक्तित्व राज्य के नियमो पर निर्भर करता है, जहां आप स्वयं को सिर्फ आईने के सामने स्वतंत्र अनुभव कर सकते है, जिसका सबसे अधिक प्रभाव लैंगिकता अर्थात स्त्री पर पड़ता है या यों कहिए कि लैंगिकता को इस नैतिकता की राजनीति के पैमाने से नापकर अन्य चीजो का स्थान तय किया जाता है, फिर चाहे वे घरेलू कार्य हो या नौकरी, स्त्रीपुरूश का पहनावा हो, या बोलचाल तौर तरीको का रहन सहन यहां तक की टेलीविजन और समाचारपत्र पर प्रस्तुत किये जाने वाले कार्यक्रम, इत्यादि प्रकार के अन्य भी कार्य है, परंतु वर्तमान युग ने नए तत्व को जन्म दिया जिसे वेब सीरिज के नाम से जाना जाता है इसकी विकसित तकनीकि ने लैंगिकता के प्रस्तुतिकरण को एक अलग ही दिषा का रूप  दिया है, वेब सीरीज ने आज के युग को प्रभावित करने का पूर्ण प्रयत्न किया है जिसके समाज पर नकारातमक और सकारात्मक प्रभाव देखे जा रहे है।

प्रस्तावना

’’मनुश्य जन्म से स्वतंत्र है, परंतु बेड़ियों में जकड़ा है’’ यह कथन कहीं न कहीं सत्य प्रतीत होता है, जहां नैतिकता में राजनीति का समावेष है। नैतिकता की राजनीति से आषय आपके लिए एक पैमाना तय कर देने से है, जहां आपको बताया जाता है कि आपको कैसे जीवन व्यतीत करना है, आपका व्यक्तित्व राज्य के नियमो पर निर्भर करता है, जहां आप स्वयं को सिर्फ आईने के सामने स्वतंत्र अनुभव कर सकते है, परंतु वास्तविकता में आप राजनीति की बेड़ियों में जकड़े हुए है और यदि वास्तविक नैतिकता को देखा जाए तो उसका तात्पर्य मानदण्ड और मूल्यो से है जिनका प्रयोग केवल व्यक्तिगत जीवन के लिए किया जाना चाहिए न कि जीवन के सामाजिक पहलुओ के लिए। नैतिकता की राजनीति को हर मोड़, हर क्षेत्र में देखा जा सकता है, जिसका सबसे अधिक प्रभाव लैंगिकता अर्थात स्त्री पर पड़ता है या यों कहिए कि लैंगिकता को इस नैतिकता की राजनीति के पैमाने से नापकर अन्य चीजो का स्थान तय किया जाता है, फिर चाहे वे घरेलू कार्य हो या नौकरी, स्त्री-पुरूश का पहनावा हो, या बोलचाल व तौर तरीको का रहन सहन यहां तक की टेलीविजन और समाचारपत्र पर प्रस्तुत किये जाने वाले कार्यक्रम, इत्यादि प्रकार के अन्य भी कार्य है, परंतु वर्तमान युग ने नए तत्व को जन्म दिया जिसे वेब सीरिज के नाम से जाना जाता है इसकी विकसित तकनीकि ने टेलीविज़न को पछाड़ कर पीछे कर दिया है। जहां लैंगिकता के प्रस्तुतिकरण ने एक अलग ही दिषा का रूप ग्रहण कर लिया है, वेब सीरीज ने आज के युग को प्रभावित करने का पूर्ण प्रयत्न किया है जिसके समाज पर नकारातमक और सकारात्मक प्रभाव देखे जा रहे है।

 

 

स्वाभाविक रूप से, मानव हमेशा वेब श्रृंखला में पात्रों के साथ अपने जीवन की तुलना करने का प्रयास करते हैं और यह नहीं भूलते कि चरित्र काल्पनिक हैं लेकिन प्रेरणा वास्तविक जीवन के लोगों से है। मानव मस्तिष्क हमेशा यह जानने का प्रयास करता है कि हमारे जैसा क्या है और जब टीवी श्रृंखला देख रहे होते हैं तो वही होता है, अर्थात आप खुद को पात्रों के साथ प्रक्षेपित करते हैं जिसके कारणवष यह अंततः हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन को प्रभावित कर, हमारे दृष्टिकोण, व्यवहार, विचारों, जीवनशैली को परिवर्तित कर देता है और मुख्य बात तो यह है कि मनुश्य उस परिवर्तन से अवगत नहीं हो पाता। जिसका प्रभाव समाज पर नकारात्मक व सकारात्मक दोनो रूप में देखने को मिलता है।

लैंगिकता और वेब सीरिज

आधुनिक काल में लैंगिकता के प्रति विमर्ष में वृद्धि हुई है, इसमें संवाद, राजनीतिक सक्रियता और संवाद की अंतर्क्रिया को एक साथ देखा जा सकता है। लैंगिकता के सांस्कृतिक प्रतिक अनेकार्थी होते है, जिसमें अधिकतर लोग अंतर्विरोधो से ग्रसित होते है, जहां लैंगिकता का प्राथमिक रूप षक्ति, सत्ता या क्षमता के साथ जोड़कर प्रस्तुत करना है। षक्ति को मर्दानगी अर्थात पुरूश से संबंधित कर इसकी अपेक्षा कमजोरी, निर्भरता, अराजक, परायापन, के रूप में स्त्रीत्व को दर्षाया जाता रहा है, क्योंकि जेंडर, मर्दानगी अर्थात पुरूश और स्त्रीत्व अर्थात स्त्री के बीच अंतर और अंतर करने वाली विशेषताओं की श्रेणी है। संदर्भ के आधार पर, इन विशेषताओं में जैविक सेक्स (यानी, पुरुष, महिला या एक अंतर-भिन्नता की स्थिति), सेक्स-आधारित सामाजिक संरचनाएं (यानी, लिंग भूमिकाएं) या लिंग पहचान शामिल हो सकती हैं, जिसे वेब सीरीज के माध्यम से भरपूर दर्षाने का प्रयास किया जा रहा है।

बाजार में इंडियन वेब सीरीज आने से पहले यह कभी चर्चा में नहीं आने वाले विचारों के बारे में बात करने से एक उत्साह उत्पन्न हुआ है। इसका प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूपों में देखा जा सकता है। हाल ही में इसके दर्शकों की संख्या में वृद्धि हुई है। वेब सीरीज के बाजार को पूरा करने के लिए हाल के दिनों में कई एप्लिकेशन बनाए गए हैं जैसे- नेटफ्लिक्स, अमेजॅन प्राइम, हॉटस्टार, उल्लू, वूट, आदि। दिलचस्प बात यह है की वे दैनिक सोप ओपेरा संस्कृति द्वारा निर्धारित मानकों से दूर होते जा रहे हैं। पश्चिमी मूल्यों से इसके सभी सरोकार जुड़े हुए है जो हमारी संस्कृति पर बड़ा आघात है क्योंकि इसके परिणाम सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हैं। “पश्चिमी नाटकों से भारतीय वेब श्रृंखला में नग्नता को संभव बनाने का भरपूर प्रयास किया है। जिस पर किसी प्रकार का कोई टैबू नहीं हैं। यह सत्य है कि भारत में बनाई जा रही वेब श्रृंखला में सेक्स को जिस तरह से दर्षाया गया है, वह भारतीय संस्कृति से बहुत अलग है, और यह पश्चिमी शो का एक प्रभाव है जिसने इस प्रकार की चीजों के लिए बाजार को खोल लिया है।

प्रारंभ में सेक्रेड गेम्स (नेटफ्लिक्स पर) की रिलीज ने इसकी प्रवीणता और संकीर्णता की प्रस्तुति से दर्शकों को आश्चर्यचकित किया तो वहीं आपराधिक न्याय (हॉटस्टार पर) या दिल्ली अपराध (नेटफ्लिक्स पर) जैसे शो कानून और न्याय के अंधेरे में स्त्री पक्ष को दिखाने के लिए सहारा लिया है। तो वहीं स्त्री सषक्तिकरण पर बल देते हुए Cable Girls, coronavirus lockdown, Deadwind, Devi, four more shots please, Killing Eve, Orange Is The New Black, Little Fires Everywhere, Hundred जैसी वेब श्रृंखला को रचा गया परंतु इसका एक ऐसा पक्ष भी है जो सकारात्मकता के साथ समाज में नकारात्मक संदेष भी देने का साधन है जिसमें कुछ वेब श्रृंखला इस प्रकार है

 

 

Lust stories, Margrita with a straw, Mirzapur, Four more shots please, Paanchali, MastRam, Made in Heaven, Mastram इस प्रकार की वेब श्रृंखला स्त्रियों की कामुकता को दर्षाती है परंतु इस प्रकार के दृष्य देखने के लिए सेक्स षिक्षा का होना अतिआवष्यक है। इस प्रकार के वेब श्रृंखला ने उद्योग में क्रांति लाने और खुद को एक ऐसी चीज के माध्यम से बाजार में उतारने का एक सकारात्मक मोड़ ले लिया है, जिसे पहले कभी भी प्रस्तुत करने योग्य नहीं माना जाता था, वे भी, कुछ मायनों में, गलत तरीके से चीजों की वास्तविकता दिखाने वाले हैं। वहीं भारतीय शो आमतौर पर यौन संकीर्णता और कार्यात्मक शराब के साथ ’गतिशील सोच को भ्रमित करते हैं’ जो आजकल सिर्फ एक विशय प्रतीत होता है। जहां यह भी विधिवत स्वीकार किया जाना चाहिए कि हम, एक समाज के रूप में, जहां न्यूनतम औपचारिक यौन शिक्षा का अभाव है, यह भी अनुभव किया जाना चाहिए कि लोगों द्वारा यौन सामग्री की पहुंच की अपेक्षा से अधिक हानिकारक परिणाम हो सकते हैं। जिस तरह से एक अपरिपक्व दिमाग इस तरह के संवेदनशील मुद्दों को मानता है, उसे दैनिक रूप से लड़कियों और महिलाओं के साथ बलात्कार के कृत्य में भाग लेने वाले नाबालिगों की संख्या से आसानी से मापा जा सकता है। इसलिए, हालांकि सेक्स, कामुकता, शराब, आदि के मुद्दों के बारे में चिंताओं पर बात करना और उनका प्रतिनिधित्व करना महत्वपूर्ण है, यह भी कि कैसे, कब, और क्यों  पर ध्यान केंद्रित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

अभी तक हिंदी फिल्मों में हमेशा ही औरत को त्याग की मूर्ति और सती-सावित्री दिखाया है। इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन औरतें सिर्फ ऐसी ही नहीं होतीं? औरतें भी इंसान हैं जिनमें कमियां, इच्छाएं और सेक्शुअल फैंटसीज होती हैं। समय के साथ बहुत से डायरेक्टर्स ने इस बात को समझा कि सेक्स की बात करने वाली औरत ‘बुरी औरत’ नहीं है और उसे वैम्प के रूप में दिखाना जरूरी नहीं है- उदाहरणस्वरूप जिसमें कुछ वेब श्रृंखला निम्न प्रकार है

’’मार्गरीटा विद अ स्ट्रॉ’’ जिसमें शारीरिक रूप से डिसेबल्ड लोगों में भी सेक्शुअल इच्छाएं होती हैं, इस बारे में इस फिल्म से पहले किसी ने नहीं दिखाया था। कल्कि केकलां ने इस किरदार को बेहद खूबसूरती से निभाया था। प्यार, सेक्शुएलिटी और जिंदगी को तलाशती इस फिल्म के सेंटर में एक औरत का होना बहुत ताजगी देता है, वहीं ’’लस्ट स्टोरीज’’ के केंद्र में 4 अलग-अलग स्त्रियां हैं, जिसमें शादी में धोखा, अपने से कम उम्र के लड़के से प्यार, मास्टरबेशन और सेक्स टॉयज जैसे विशयों को केंद्रित किया गया, दूसरी ओर ’’मिर्जापुर के माध्यम से लाइब्रेरी में इरोटिका पढ़कर मास्टरबेट करती लड़की और पति से असंतुष्ट रह जाने वाली स्त्री इस सीरीज के मजबूत किरदार के साथ, ’’फोर मोर शॉर्ट्स प्लीज’’ शो को पसंद किया जाए या नहीं, लेकिन ये बात तो तय है, इस शो ने स्त्री को एक इंसान के रूप में दर्षाया है। अपने डॉक्टर के बारे में फैंटसी रखने वाली स्त्री और अपनी वर्जिनिटी खोने के लिए एक पुरूश प्रॉस्टिट्यूट बुलाने वाली एक लड़की भी इसी समाज का भाग हैं, जिसे इस शो के माध्यम से बहुत अच्छे से दर्षाया गया है इत्यादि प्रकार की अन्य सीरीज भी देख जा सकती है। इस प्रकार इनके चलते समाज में आये और आ रहे बदलावों के बारे मेंदर्षाया गया है। जहां स्त्रियों के लिए अब विकल्प अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खोल दिए गए है जिसके लिए आज की स्त्री अब जागरूक हो रही है, स्त्री को समर्थता के साथ सषक्तिकरण को बढावा दिया जा रहा है। यह समाज की यर्थाथता को दर्षाने का एक प्रयास है जो कहीं न कहीं दबी हुई है। सेंसर बार्ड से हडा दिया जाता है, स्त्रियों के लिए षक्ति की धारणा को दर्षाने का एक कार्य कर रहा है जहां स्त्रियों की कामुकता को प्रधानता दी रही है परंतु यह बात भी सत्य है कि इस

 

 

शक्ति की परिभाषा का पूर्ण रूप से सही प्रस्तुतीकरण नहीं किया जा रहा है जिसका कारण वर्तमान और आने वाली पीढ़ी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ कता है, जिसका कारण सेक्स को अधिक परोसना रहा है।

आलोचनात्मक मूल्यांकन

वर्तमान युग की वेब श्रृंखला शैक्षिक होने के साथ-साथ मनोरंजक भी हो सकती है। यह लोगों को दुनिया भर में यात्रा करने का अवसर दे सकता है, और नए विचारों को उजागर कर सकता है जो उन्हें अपने समुदाय से सामना नहीं करना पड़ सकता है, और विभिन्न संस्कृतियों के बारे में जानने का मौका भी। वेब श्रृंखला के शो से प्रो-सामाजिक संदेश आज के युवाओं के व्यवहार पर सकारात्मक प्रभाव डालेंगे। हालांकि, इन वेब श्रृंखलाओं से नकारात्मक मूल्यों को सीखने की अधिक संभावना है।

जैसा कि हम सभी जानते हैं, युवाओं को अपने व्यवहार में किसी के व्यवहार की नकल और अनुकूलन करने की अधिक संभावना है क्योंकि वे आसानी से वेब श्रृंखला में दिखाए गए से संबंधित हो सकते हैं। आज निश्चित रूप से युवाओं में बहुत से व्यवहार परिवर्तन होंगे यदि वे वेब श्रृंखला पर दिखाई जाने वाली अत्यधिक हिंसा के संपर्क में हैं। इस प्रकार के कार्यक्रम इन युवाओं को उनके व्यवहार और उनके विचारों में आक्रामक होने के लिए प्रोत्साहित करेंगे और  प्रभावित होने की अधिक संभावना होगी।

वेब श्रृंखला न केवल आक्रामक के प्रति अपने व्यवहार को बदल रही है, बल्कि उनकी भाषा और भाषा को भी बदल रही है जो किसी भी संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। युवाओं में धूम्रपान, शराब पीने की आदतें तेजी से बढ़ रही हैं। अन्य भौतिक गतिविधियों की तुलना में मनोरंजन के स्रोत के रूप में वेब श्रृंखला का अधिक उपयोग। आमतौर पर युवाओं में मोटापा, अवसाद, नेत्र विकार देखे जाते हैं। निष्कर्ष बताते हैं कि युवाओं को पता चलता है कि वेब श्रृंखला शो की सामग्री समाज की नैतिकता, संस्कृति और मूल्य के खिलाफ है।अंत में अध्ययन विश्लेषण के माध्यम से यह स्पष्ट है कि वेब श्रृंखला मानसिक रूप से और साथ ही युवा युवाओं पर शारीरिक रूप से प्रभावित करती है।

आज का समाज नैतिकता की राजनीति में फंसा हुआ है जिसने नैतिकता की जड़ो को खोखला करना षुरू कर दिया है। जहां गुड स्वयं को अर्थात अच्छे को नैतिकता की श्रेणी में रखता है जिसे शक्तिषाली लोगो द्वारा तैयार किया जाता है और यही शक्तिषाली लोग जैसे की पितृसत्तात्मक ढ़ाचा स्वयं से नीचे के लोगो को कमजोर व इविल की संज्ञा देते है। और इसी ढाचें के चलते आधुनिक समाज में समझने ओर समझाने के तरीको में परिवर्तन अत्यधिक नकारात्मक प्रारूप में सामने आया है जिसे परिवर्तन की अतिआवष्यकता है।

वहीं इस बात को भी समझने की आवष्यकता है कि कुछ लोगो द्वारा कैसे पूरे समाज के लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा का निर्णय किया जा सकता है। कैसे इस प्रकार भेदभाव की नैतिकता को नियम के रूप में परिवर्तित करके मानवता पर थोपा जाता है। बहरहाल, बीते दो सालों के अंदर छोटे और बड़े पर्दे के बीच एक नये तीसरे पर्दे यानी वेबसीरीज ने भी प्रवेश लिया है जहां कैमरे की तीसरी आंख अपने भीतर वह सबकुछ समेट रही है जो हमारे घर, समाज और अंतरंग दुनिया में अब तक कई पाबंदियों के साथ पहुंचता था। वेबसीरीज का तीसरा पर्दा छोटा है लेकिन उसका विस्तार और पहुंच हर व्यक्ति, बच्चे, बूढ़े, औरतों के हाथों में है।

 

हर पांबदी से दूर, सेंसर से परे और बेहिसाब बेरोक-टोक के वेबसीरीज हमारे पास हमारा ही अंधेरा उस रौशनी के साथ परोस रही है जिसे देखकर हम कभी उसके बदलाव के प्रति चिंतित हुआ करते थे। खून-खराबे की घटनाएं, बलात्कार, शोषण, गालियों और हिंसा के दृश्यों से अटी पड़ी ये वेबसीरीज सिनेमा का नया स्वरूप है। जहां रचनात्मक उड़ान के लिए कोई पाबंदी नहीं है और दृश्यांकन के लिए कोई सेंसर नहीं  है। वेबसीरीज की नई दुनिया ने हमारे समाज के यथार्थ को मनोरंजन बना दिया है। दमन, शोषण, बेचौनी, डर, भय, कुंठाओं, मानवीय त्रासदियों, विद्रुपताओं, जीवन के विभत्स के हिस्से को कंटेंट और प्रोडक्ट में बदल दिया गया है।

साहित्य के सामानांतर फिल्में और सिनेमा सामाजिक बदलावा का माध्यम तो बना है, लेकिन सेंसर की मर्यादा के साथ। उसने अपने समाज और समय के सवालों को उसके हल, संशोधनों और अपेक्षित आग्रहों के साथ प्रस्तुत किया है। फिल्में सीमाओं में रही हैं और समाज के बीच हद में भी। फिल्मों की तुलना में  तीसरे पर्दे  यानी की वेबसीरीज में सबकुछ कंटेंट है और प्रॉडक्ट का हिस्सा। यथार्थ यहां बदलाव के आग्रह के साथ नहीं आया है बल्कि व्यूअरशिप और मनोरंजन के साथ मौजूद है। दरअसल, वेबसीरीज में गालियों से भरपूर, हिंसा से लबरेज और बेहद विभत्स तरीके से दर्शाए सेक्स के दृश्यों ने उसे सॉफ्ट पॉर्न के बीच घटती कथाओं से मनोरंजित किया है। हाथ में मोबाइल, हिंसा, गालियों और सेक्स में डूबे दृश्यों के बीच बह रही एक कहानी से चाश्नी सा चस्का। यह कंटेंट हमारे ही परिवेश से उठाकर तड़के और मसाले के साथ बेचने की कला का तरीका है जो एक समय तक तो आर्कषित कर चुका है लेकिन अब विद्रुपताओं, हिंसा, पॉर्न कंटेंट के कारण सवालों के घेरे में है।

सिनेमा में सेंसर बोर्ड है लेकिन टेली सीरियल्स उनके चनतअपमू के अंतर्गत नहीं आते हैं । सीरियल निर्माता समाज को कई बुरे संदेश दे रहे हैं, बता रहे हैं और चित्रित कर रहे हैं। यह पूरी तरह से नकारात्मक और बुरी चीजों को प्रेरित करता है, और लोगों के दिमाग में नए बुरे विचारों को नया रूप देता है। वहीं नैतिकता की राजनीति की बात करे तो नैतिकता की राजनीति केवल स्त्रियों के लिए ही क्यों होती है? जहां अच्छा और बुरे का निर्णय सिर्फ सत्ताधारी हाथों में ही क्यों होता है?

इसके माध्यम से पुरानी परंपराओं पर यह आघात का स्रोत है, जिसका कारण इसका यह एक ओपन सोर्स होना है जिसकी कोई सीमाएं नहीं है। इसीकारण इसपर सेंसरषिप नहीं लगाया जा सकता। इस प्रकार की नकारात्मकता को निशेध करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में 100 से अधिक की संख्या मे पीटीषन उाली गई है जिस पर कोई कार्यवाही न होने और किसी प्रकार की रोक न लगा पाने के कारण यह घातक सिद्ध हो सकता है। वहीं इसका अन्य कारण इसका अत्यधिक काल्पनिक होना भी है जिसे वास्तविक जीवनषैली में न के बराबर ही देखने को मिलता है, क्योंकि यह सिर्फ एक उघोग मात्र है, जहां महिला को बस अपने उघोग में बढ़ोतरी का साधन मात्र के रूप में देखने का प्रयास किया गया है। परंतु ऐसी रूढ़ियों को भी तोड़ा है जहां फिल्मों, सीरीयलो में पुरूशों को बाहुबली के रूप् में दर्षाया जाता है परंतु वेब सीरीज में इसके विपरित दर्षाया गया है जहां एक स्त्री को बाहुबली होने की आवश्यकता नहीं वह बिना इसके भी सब पर नियंत्रण कर सकती है। समाज इसी से प्रभावित होकर अब उसी प्रकार के जीवन जीने की अग्रसर है।

 

 

 

निष्कर्ष

निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि लोग वेब श्रृंखला शो से अत्यधिक प्रभावित हैं। क्योंकि वे अन्य गतिविधियों के बजाय वेब श्रृंखला शो पर अधिक ध्यान और समय देते हैं। जबकि वर्तमान समय में यह भी महत्वपूर्ण कारक है कि परिवार के सदस्य (माता-पिता) युवा युवाओं को कम समय देते हैं, इसलिए, वे ज्यादातर वेब श्रृंखला शो देख रहे हैं। घर में, हर किसी के पास वाई-फाई कनेक्टिविटी के साथ अलग-अलग बेडरूम हैं, इसलिए युवा घंटों के लिए कमरों में बंद हैं। जब उम्र के युवाओं को वेब श्रृंखला पर अधिक ध्यान केंद्रित करना होगा, तो इसका मतलब है कि वे वेब श्रृंखला से बहुत कुछ सीख रहे हैं। वास्तव में, विश्लेषण से पता चलता है कि अधिकांश युवा मनोवैज्ञानिक रूप से वेब श्रृंखला के माध्यम से प्रभावित होते हैं। फिल्में कैमरे की आंख का सौंदर्य है। फिल्मी दुनिया अपने सौंदर्यबोध में जितनी खूबसूरत है उतनी ही विद्रूप भी। एक ओर कैमरे में दर्ज कहानियां सपनों का संसार बुनती हैं तो वहीं अपने समय की विद्रूपताओं और विभत्सताओं से अंधेरे की दुनिया भी। हमारी फिल्मों में सौंदर्य और यथार्थ दोनों ने अपनी तरह की रचनात्मकता के साथ हमारे बीच जगह बनाई है। यथार्थ यहां मनोरंजन हैं और शोषण कंटेंट। इन दोनों का मिश्रण जितना मसालेदार होगा उतना ही बिकेगा और लोकप्रिय होगा। अपने समय के यथार्थ और उसके विभत्स स्वरूप को बताते हुए साहित्य ने समाज को दिशा देने के साथ-साथ शोषण और दमकारी प्रवृत्तियों को हटाने के  लिए राजनीतिक हस्तक्षेप, आंदोलन और विद्रोह को पर्याय माना है और उसे जगह दी है।

अगर ऊर्जा को सही दिशा ना दी जाए तो इसका दुष्परिणाम भी हो सकता हैं जैसे कि परमाणु शक्ति से हम इलेक्ट्रिसिटी भी बनना सकते हैं जो कि समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वही दूसरी ओर परमाणु बम जो कि समाज की आने वाली पीढ़ियों को भी विनाश की कगार पर खड़ा कर देती है।

हमारी भारतीय संस्कृति पारिवारिक मूल्यों से बहुत समृद्ध और बंधुआ है। लोग उस पारिवारिक बंधन में जीते हैं जो हमेशा के लिए रहता है, जिसके लिए भारत जाना जाता है। लेकिन ये टेली धारावाहिक इन मूल मूल्यों को बर्बाद कर रहे हैं और बदले में हमारे परिवार और समाज को तोड़ रहे हैं। यह निश्चित रूप से इनकार नहीं किया जा सकता है कि नेटफ्लिक्स और अमेजॅन प्राइम जैसी स्ट्रीमिंग सेवाएं व्यापक पहुंच प्रदान करती हैं और भारतीय फिल्म निर्माताओं को अपनी वास्तविक रचनात्मकता प्रदर्शित करने में मदद करती हैं। लेकिन नग्नता दिखाने वाली सामग्री, या हिंसा में संलग्न होने से संबंधित चिंताएँ भी मान्य हैं। इस प्रकार सेल्फ-सेंसरशिप एक अच्छे समाधान के रूप में दिखाई देती है।

संदर्भ

  1. De Beauvoir, Simone (2005), “Introduction from The Second Sex“, in Cudd, Ann E.; Andreasen, Robin O. (eds.), Feminist theory: a philosophical anthology, Oxford, UK Malden, Massachusetts: Blackwell Publishing, pp. 27–36
  2. Scott, Joan Wallach (1986). “Gender: A Useful Category of Historical Analysis”. The American Historical Review91(5): 1053. 
  3. Anderson, C, A. (2003). The influence of media violence on youth. Psychological Sciencein the Public Interest. December, 4, 110.

 

  1. Gokulsing, K, M. (2009).Popular culture in globalized India. Routledge.
  2. Kottak, C.P. (1990). Prime time society: An anthropological analysis of television andculture. Belmont, CA: Wadsworth.
  3. BAndura, D. R. (1963). Abnorm. Soc. Psychol.
  4. a. Anderson, L. B. (2003). Influence of media violence on youth. Psychol. Sci. PublicInteres.
  5. Huesmann, B. J. (2006). Short-term and long-term effects of violent media on aggressionin childern and adults. Arch. Pediatr. Adolesc. Med.

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.