असम का सांस्कृतिक पर्यटन : अनुवाद और निर्वचन की वर्तमान स्थिति एवं समस्याएँ

उज्जवल डेका बरुआ
पी-एच.डी.( अनुवाद अध्ययन विभाग)
इंदिरा गांधी मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
मोबाइल नं. : +91-9870563628
ईमेल : ujjaldekaboruah@gmail.com

 

असम भारत का उत्तर पूर्वी राज्य है। यह एक सीमांत राज्य है जो चतुर्दिक, सुरम्य पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ है। यह अपनी भौगोलिक स्थिति के अनुसार भारत की पूर्वोत्तर सीमा 24° 1′ उ.अ.-27° 55′ उ.अ. तथा 89° 44′ पू.दे.-96° 2′ पू॰दे॰) पर स्थित है। संपूर्ण राज्य का क्षेत्रफल 78,466 वर्ग कि.मी. है। इसकी राजधानी दिसपुर है। इस राज्य के उत्तर में अरुणाचल प्रदेश, पूर्व में नागालैंड तथा मणिपुर, दक्षिण में मिजोरम तथा मेघालय एवं पश्चिम में बंग्लादेश स्थित है। यह एक जनजातीय प्रधान राज्य है। इस राज्य की प्रमुख जनजाति अहोम है। इसके अलावा कार्बी, खामती, हाजोंग, देवरी, मोरन, मटक, चूतिया, मिसिंग, तिवा, टी ट्राइब, मेष, सोनुवाल, कछारी, बोड़ो, और राभा आदि प्रमुख जनजातियाँ हैं।

प्राचीन भारत में असम प्रदेश को ‘प्रागज्योतिष’ के नाम से जाना जाता था। पुराणों में यह माना जाता है कि इस राज्य की राजधानी‘कामरूप’थी। महाभारत के अनुसार कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध ने यहाँ की उषा नाम की युवती पर मोहित होकर उसका अपहरण कर लिया था। वहीं दूसरी ओर असम की दंत कथाओं में प्रचलित है कि अनिरुद्ध पर मोहित होकर उषा ने ही उनका अपहरण कर लिया था। इस घटना को यहाँ ‘कुमारहरण’ के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल से लेकर 7वीं सदी के मध्य में भास्कर वर्मन के शासनकाल तक एक ही राजवंश का शासन रहा था। भगदत्त के वंशज भास्कर वर्मन स्थानिस्वर के शासक हर्षवर्धन के समकालीन और उनके खास मित्र थे। राजा भास्कर वर्मन का यह राजत्व पूरे असम राज्य के अलावा बिहार तक फैला हुआ था। राजा भास्कर वर्मन के शासन काल में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनत्सांग बहुत दिनों तक असम में रहा था। उसने तत्कालीन कामरूप के धर्म, समाज और वहाँ की स्थानीय भाषा पर का वर्णन अपने यात्रावृत्तों में किया है।

‘असम’ शब्द संस्कृत भाषा से लिया गया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘वह भूमि जो समतल नहीं है।’ कुछ लोगों की मान्यता है कि ‘असम’ संस्कृत के ‘असोमा’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ है ‘अनुपम अथवा अद्वितीय ।’ असम को पुण्यभूमि भी कहा जाता है। कृषि प्रधान राज्य होने के साथ-साथ यहाँ पचास से भी अधिक जनजातियाँ एवं उप-जनजातियाँ निवास करती हैं। असम राज्य को मुख्त तीन भागो में बांटा जाता है। पहला ऊपरी असम (अपर असम), दूसरा मध्य असम तथा तीसरा निम्न असम (लोअर असम)। ऊपरी क्षेत्र से लेकर निचले क्षेत्र तक जनजातियाँ तथा उसकी उपजनजातियाँ निवास करती हैं। इतना ही नहीं, उनकी संस्कृति विविधता से भरी हुई हैं। लेकिन जब संस्कृति एकजुटता की बात आती है, तो वे एक साथ होकर अपनी संस्कृति को दर्शाते हैं। असम में जो लोग पहले से बसे हैं उन्होंने ही असमीया संस्कृति को अपनाया व उन्होंने ही नई भाषा को जन्म दिया। जिसे ‘असामिस’के नाम से जाना जाता हैं। असमीया समाज में रहने वाले लोग विभिन्न वंशों से हैं। जैसे-ओकानिक, नैग्रितोश, इरानी, अल्फन, आस्ट्रिक, द्रविड़ और इंडो मंगोलियन वंश समूह से नागा, बोरो, मिसिंग, ताई और अहोम इत्यादि हैं, जो असमीया संस्कृति को अपना चुके हैं। “असम में हस्तशिल्प तथा हथकरघे से बनी वस्तुएँ मुख्य रूप से पाई जाती हैं, असम में मूंगा और पाथ रेशम लोगों को विशेष रूप से लुभाता हैं।” “खट खट खट सलारे हबद पिरित मुल नित नुसुवाये।” यह एक महत्वपूर्ण गीत हैं, जो स्वालकुची शहर और वहाँ के रेशम की बुनाई पर लिखा गया है। रेशम से बनाए गए वस्त्र मेखला, चादर, लुंगी, धोती को असमीया लोगों द्वारा अपने दैनिक जीवन या किसी उत्सवों और मेलों में पहने जाते हैं। असम की संस्कृति को दर्शाने वाले बैथ और बांस के पेड़ भी बहुत महत्वपूर्ण हैं, जिसका असमीया लोग अपने दैनिक जीवन में इसका प्रयोग अनेक रूपों में करते हैं। असम में अधिकांश घर बाँस के बनाए जाते हैं। बैथ और बांस से मछली पकड़ने का यंत्र जैसे जाकोई, पोलो, ढिंगा, बोरोखी, बर्तनों में खराही, डौला, सालोनी, ताथ, हल, विस्तर नाव भी निर्मित किए जाते हैं।

सांस्कृतिक पर्यटन के अंतर्गत सांकृतिक परंपराओं से जुड़ी सामग्री को देखना-समझना और संबंधित स्थलों की यात्राएँ शामिल होती हैं। इसी क्रम में धार्मिक महत्व के स्थानों की भी यात्राएँ लोगों द्वारा की जाती हैं। सांस्कृतिक पयर्टन के विकास का मुख्य उद्देश्य लोगों को उनकी पैतृक धरोहर से जोड़े रखना है। पर्यटन स्थलों पर अलग-अलग भाषाओं और प्रदेशों के लोग भ्रमण करने आते हैं। चूंकि वे लोग स्थान विशेष की भाषा से परिचित नहीं होते, इसलिए उन्हें भाषाई समस्या का सामना करना पड़ता है। अतः पर्यटन स्थलों पर अनुवादक एवं निर्वचक की आवश्यकता होती है। अनुवाद से आशय भाषांतरण की क्रिया से है। इसके सहारे अनुवादक सूचनाओं को सही-सही पर्यटकों की भाषा में उन तक संप्रेषित करता है। इसके साथ ही सांस्कृतिक पर्यटन स्थलों के प्रति स्थानीय लोगों की अपनी मान्यताएँ, विश्वास और अस्थाएँ होती हैं, जिनको बाहर के लोग नहीं जानते। वे लोग ऐसी अपेक्षा रखते हैं कि वे उन मान्यताओं, विश्वासों और अस्थाओं को जान सकें। ऐसी दशा में सांस्कृतिक पर्यटन स्थलों पर अनुवादक के साथ-साथ निर्वचक की भी आवश्यकता होती है।

सांस्कृतिक पर्यटन में अनुवादक का कार्य केवल भाषांतरण तक ही नहीं सीमित होता, बल्कि उसे विश्वासों और मान्यताओं के पीछे छुपे प्रसंगों और इतिहास का भी बोध कराना पड़ता है। जैसे- किसी विदेशी पर्यटक को अयोध्या या राम के बारे में बताना है, तो अनुवादक यह बता कर भी काम चला सकता है कि अयोध्या एक स्थान का नाम है और राम और उनके वंशज वहाँ के राजा थे, लेकिन अयोध्या के धार्मिक महत्व को बताने के लिए एक निर्वचक की आवश्यकता होगी। धार्मिक महत्व को स्पष्ट करने के लिए राम के जीवन और रामायण के प्रसंगों को स्पष्ट करना पड़ेगा। इस प्रकार सांस्कृतिक पर्यटन के क्षेत्र में अनुवादक और निर्वचक की भूमिका एक साथ शुरू होती है।

अनुवाद में भाषा की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है। सामान्य अर्थों में अनुवाद का आशय ही भाषांतरण के संदर्भ में ग्रहण किया जाता है। अनूदित सामग्री का रूप लिखित या अलिखित हो सकता है। दोनों ही प्रकार की सामग्री के अनुवाद के समय अनुवादक से आपेक्षा की जाती है कि वह क्लिष्ट और अव्यावहारिक शब्दावलियों का चयन न करे, बल्कि जन सामान्य के द्वारा व्यवहार में लाई जाने वाली शब्दावलियों का चयन करे, जिससे लोगों को समझने में कोई समस्या न हो। पर्यटन के क्षेत्र में अनुवाद का कार्य दो स्तरों पर चलता है – पर्यटक गाइड द्वारा किया जाने वाला अनुवाद और पर्यटन के प्रचार-प्रसार के लिए अन्य लोगों द्वारा किया जाने वाला अनुवाद। इसके लिए अनुवादक को पुस्तक, विज्ञापन, आलेख और पोस्टर आदि का अनुवाद करना होता है। सामग्री के अनुवाद के संबंध में अनुवादक को सामग्री के स्वरूप और गंभीरता के अनुरूप लक्ष्य भाषा का चयन करना पड़ता है। ऐसा न होने की दशा में अनुवाद केवल यांत्रिक और पृष्ठ प्रेषण बनकर रह जाता है, जो सार्थक नहीं होता। पर्यटक गाइड द्वारा किए जाने वाले अनुवाद कार्य का सीधा संबंध पर्यटक से होता है, जिसमें सूचनाएँ तत्काल एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के पास जाती हैं। इसलिए यह अनुवाद बहुत कुछ दुभाषिया द्वारा किए जाने वाले अनुवाद के निकट माना जा सकता है।

सांस्कृतिक पर्यटन की दृष्टि से किए जाने वाले निर्वचन में अनुवाद आधार का काम करता है। इसके अंतर्गत पर्यटक गाइड द्वारा सूचनाओं, ऐतिहासिक-पौराणिक चरित्रों, स्थानों और घटनाओं आदि की व्याख्या की जाती है। निर्वचन के माध्यम से तथ्यों और सूचनाओं का संप्रेषण बोधात्मक स्तर पर संभव होता है। सूचनाओं का संप्रेषण व्यवहार की भाषा में किया जाता है, अत: जटिल शब्दावलियों का प्रयोग नहीं किया जाता। सूचनाओं का संप्रेषण भली प्रकार बोधात्मक स्तर तक हो, इसके लिए निर्वचन में कभी-कभी नाटकीयता भी देखने को मिलती है। निर्वचन में सूचना देना, इतिहास बोध कराना भी शामिल होता है। इतिहास बोध से एक आशय उस इतिहास से है जो लिखित रूप में है उपलब्ध है और जिसे लोग प्रामाणिक मानते हैं। इसके साथ ही लोक में प्रचलित इतिहास से भी है, जो अलिखित है और केवल मौखिक रूप में कहानियों, जनश्रुतियों आदि के द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक, दूसरी से तीसरी तक और इसी प्रकार आगे की पीढ़ियों तक संरक्षित किया जाता है। सांस्कृतिक पर्यटन के संदर्भ में पर्यटक गाइड को लिखित इतिहास के साथ ही लोक प्रचलित इतिहास का भी बोध कराना और उसका निर्वचन करना पड़ता है, इसलिए यह आवश्यक है कि पर्यटक गाइड इतिहास में रुचि लेने वाला हो। ऐसा न होने की दशा में वह पर्यटकों को सही सूचनाएँ नहीं दे पाता। इसके साथ ही पर्यटकों को सामान्य व्यवहार में भी अनुवाद के साथ निर्वचन की आवश्यकता होती है। जैसे- किसी स्थानीय व्यक्ति से स्थान विशेष का मार्ग पूछने के क्रम में पर्यटक गाइड को अनुवाद के साथ ही निर्वचन करना पड़ता है, जिसमें नाटकीयता भी देखने को मिलती है। निर्वचन की पूरी प्रक्रिया भाषा के सही प्रयोग पर आधारित होती है। पर्यटक गाइड को अच्छा निर्वचक होना चाहिए और उसका भाषा ज्ञान उसके कार्य के अनुकूल होना चाहिए।

हम कह सकते हैं की सांस्कृतिक पर्यटन में पर्यटक गाइड, अनुवादक, निर्वचक और पर्यटकों के बीच अभिन्न संबंध है। इनमें से कोई भी भाषा के बिना नहीं हो सकता। विशेष रूप से भारत जैसे विविध संस्कृति, धर्म, रीति-रिवाजों वाले बहुभाषिक समाज में सांस्कृतिक पर्यटन के लिए अनुवादक-निर्वचक का होना जरूरी है। बिना अनुवादक-निर्वचक के भाषाई बाधा के कारण एक-दूसरे की संस्कृतियों, परंपराओं, मान्यताओं को नहीं समझ सकते। आज सांस्कृतिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थलों के अतिरिक्त वाहन सुविधा, ठहरने के लिए आवास, शहर और बाजार में सामानों की ख़रीदारी के लिए भी अनुवादक-निर्वचक की आवश्यकता होती है। ऐसी दशा में स्थानीय लोग अनुवादक-निर्वचक की भूमिका का निर्वहन करते हैं। स्थानीय लोगों के बहुत कम शिक्षित होने और प्रशिक्षित नहीं होने के कारण उन्हें अनुवाद-और निर्वचन का ठीक-ठीक ज्ञान नहीं होता। इस कारण वे सभी चीजों/तथ्यों को सही-सही संप्रेषित नहीं कर पाते। इसके बावजूद वे अनुवादक-निर्वचक का कार्य संपादित करते हैं। ये अनुवादक-निर्वचक होटलों, अथितिगृहों अन्य ललित कलाओं आदि से लोगों को परिचित कराकर विश्व के अन्य भागों तक भारतीय संस्कृति को पहुँचा रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो ये लोग विश्व के अन्य लोगों को भारतीय संस्कृति का दर्शन कराने वाले लोग हैं।

असम में सांस्कृतिक पर्यटन के क्षेत्र में सामान्य रूप से असमीया, अंग्रेजी, हिंदी, स्पानी, फ्रांसीसी आदि भाषाओं का प्रयोग किया जाता है। इनमें से पर्यटन व्यवसाय के प्रचार-प्रसार के लिए बैनर, पोस्टर, विज्ञापन, पत्र-पत्रिकाएँ, सूचनाएँ आदि में असमीया और अंग्रेजी मुख्य भाषाएँ होती हैं। पत्र-पत्रिकाओं में अधिकतर विज्ञापन असमीया में छापे जाते हैं। पर्यटन-कार्यालयों और स्वागत-केंद्रों पर अधिकतर सूचनाएँ अंग्रेज़ी, हिंदी और आमीया में प्रदान की जाती हैं। पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों का मार्ग-दर्शन करने के लिए जो गाइड रहते हैं, वे अधिकांशत: असमीया भाषी होते हैं, अत: उन्हें असमीया संस्कृति और इतिहास जानकारी होती है। वे असम की परम्पराओं, सामाजिक जीवन, पूजा-पाठ, खेलों, लोकनायकों आदि के बारे में बहुत अच्छी तरह जानते हैं। इन सबसे संबंधित सांस्कृतिक शब्दावली भी उन्हें अच्छी तरह याद होती है। लेकिन पर्यटकों की भाषा संबंधी समस्या के कारण वे असमीया शब्दावली को नहीं समझते। इसलिए यह ज़रूरी होता है की पर्यटकों को उनकी भाषा में संस्कृति संबंधी शब्दावली के बारे में बताया जाए। इससे पर्यटकों को असम की संस्कृति के बारे में पता चल सकेगा। इस कारण पर्यटक गाइड को अनुवाद और निर्वचन करके पर्यटकों को समझाना ज़रूरी है।

असम एक संस्कृति प्रधान राज्य है। यहाँ के लोग असमिया को संपर्क-भाषा के रूप में प्रयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त असम में निवास करने वाली विभिन्न जनजातियाँ अपनी-अपनी भाषाओं का प्रयोग भी करती हैं। हिंदी और अंग्रेज़ी ऐसी दो अन्य भाषाएँ हैं, जो असम में प्रचलित हैं। विभिन्न जनजातियों और उप-जनजातियों की अपनी मान्यताओं, मतों, विश्वासों और आस्थाओं के कारण इनकी संस्कृति विशेष आकर्षण का केंद्र मानी जाती है। अध्ययन क्षेत्र में पाया गया कि जनजातीय समाज के लोग कम पढ़े होते हैं, जिसके कारण ये लोग असमीया न बोलकर केवल अपनी जनजातीय-भाषा बोलते हैं। इसके साथ ही इनकी भाषाओं में बहुत से ऐसे सांस्कृतिक शब्द हैं, जो मुख्य धारा की असमीया में नहीं हैं।

सांस्कृतिक-पर्यटन की दृष्टि से भारत का बहुत महत्वपूर्ण केंद्र होने के बावजूद असम में पर्यटकों को भाषाई स्तर पर बहुत-सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। भाषाई समस्याओं से निजात पाने के लिए पर्यटक पर्यटन-गाइड का सहारा लेते हैं। पर्यटन गाइड पर्यटकों को असम के पर्यटक स्थलों भ्रमण करवाते हैं और उनकी महत्ता के संदर्भ में जानकारी प्रदान करते हैं। परंतु पर्यटक गाइडों के कुशल प्रशिक्षण के अभाव में सूचनाएँ संप्रेषित नहीं हो पातीं और संप्रेषण टूटने लगता है। कभी-कभी पर्यटक गाइड अव्यावहारिक और क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग करते हैं, जिससे पर्यटक केवल शब्दों में उलझ कर रह जाता है। अध्ययन में पाया गया कि असम में पंजीकृत पर्यटक गाइडों की संख्या बहुत ही कम है। उनका भाषा-ज्ञान भी जैसा होना चाहिए, उससे निम्न स्तर का है। इस कारण बहुत से पर्यटक पर्यटन गाइडों को अपने साथ अपने देश से लेकर आते हैं। पर्यटकों द्वारा पर्यटन गाइडों को अपने साथ लाने के मुख्य कारणों में पंजीकृत गाइडों की संख्या में कमी के साथ ही असम राज्य के पंजीकृत और अपंजीकृत गाइडों की भाषाई दुरूहता भी है।

असम राज्य में पर्यटन गाइड प्रशिक्षण केंद्रों का अभाव होने के साथ ही उनमें संचालित संबंधित पाठ्यक्रमों का भी अभाव है। प्रशिक्षण केंद्रों में प्रशिक्षण के नाम पर अलग-अलग भाषाओं का कुछ माह का प्रशिक्षण दिया जाता है। जिससे कि गाइड पर्यटकों से सूचनाओं का संप्रेषण उनकी अपनी भाषा में कर सकें। परंतु भाषा में परिपक्व और कुशल न होने के कारण वे सूचनाओं और स्थान विशेष की महत्ता, मान्यताओं और विश्वासों को पूर्णता के साथ संप्रेषित नहीं कर पाते।

प्रशिक्षण केंद्रों और संबंधित निकायों में प्रशिक्षु गाइडों को अनुवाद और निर्वचन के बुनियादी सिद्धांतों और व्यावहारिक पक्षों को नहीं बताया जाता। उन्हें केवल भाषांतरण सिखाया जाता है। जिस कारण इन पर्यटक गाइडों की भाषा एक प्रकार से मशीनी हो जाती है। वे शब्द के स्थान पर शब्द तलाशते हैं। भाषाई दुरूहता, क्लिष्ट शब्द चयन, स्थान विशेष की बोली से अपरचितता और प्रशिक्षण का अभाव होने के कारण पर्यटक गाइड पर्यटकों को केवल भ्रमित करते हैं। ऐसी दशा में पर्यटकों की संख्या में पेक्षित वृद्धि नहीं हो पा रही है।

इह देखा गया है कि समाचार पत्रों में सांस्कृतिक उत्सवों, समारोहों और त्योहारों से संबंधित सूचनाओं, विज्ञापनों तथा पंपलेट्स व होर्डिंग्स आदि में केवल अंग्रेजी और असमिया भाषा का ही प्रयोग होता है। अन्य भाषाओं में इनका प्रकाशन नहीं किया जाता। जिससे ये संबंधित सूचनाएँ केवल उक्त भाषा के जानने वाले कुछ लोगों तक ही सीमित हो जाती हैं। पर्यटन और संस्कृति से संबंधित पुस्तकों का प्रकाशन केवल अंग्रेजी और असमिया भाषा में ही संबंधित विभाग द्वारा किया जाता है जिस कारण इनका वितरण कुछ लोगों तक ही सीमित हो जाता है। इसके साथ ही पर्यटन स्थलों में स्थानीय लोगों की सहभागिता का अभाव है। शब्दावलियों के संग्रह की समस्याएँ भी मौजूद हैं। संग्रहालय की भाषा अंग्रेजी और असमिया है। इन दशाओं में पर्यटक भाषाई दुरूहता से बचने के लिए, भ्रमित न होने के लिए इन क्षेत्रों में आने से बचते हैं। जिस कारण इनकी संख्या में आपेक्षित वृद्धि नहीं हो रही है।

भाषागत समस्या का स्वरूप:

क्रम सं. भाषागत समस्या का स्वरूप सांस्कृतिक स्थलों और कार्यक्रमों/समारोहों से संबंधित विज्ञापन पंपलेट्स की भाषा: अंग्रेजी एवं असमिया
1.
समाचारपत्र के विज्ञापनों की भाषा: अंग्रेजी एवं असमिया
होर्डिंग्स की भाषा: अंग्रेजी एवं असमिया
ई-विज्ञापन की भाषा: अंग्रेजी एवं असमिया
2. सांस्कृतिक महत्व और सांस्कृतिक स्थल की महत्ता व विवरण से संबंधित पुस्तकें संस्कृति विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की भाषा: अंग्रेजी एवं असमिया। जैसे- The Abode of The Original, Folk Toys of Assam
पर्यटन विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की भाषा: अंग्रेजी एवं असमिया। जैसे- Assam Travel Guide,
बीणा लाइब्रेरी द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की भाषा: अंग्रेजी, असमिया एवं हिंदी। जैसे- पुण्यभूमि कामाख्या
असम हिंदी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की भाषा: हिंदी।
हिंदी प्रचार एवं सांस्कृतिक संस्थाओं तथा व्यक्तियों द्वारा प्रकाशित सामग्री की भाषा : हिंदी (जैसे- प्रागज्योतिष, लौहित्य और नीलाचल, असमिया लोक साहित्य, मनसाकाव्य), असमीया और अंग्रेज़ी ।
3. सांस्कृतिक महत्व व सांस्कृतिक स्थल की महत्ता संबंधी पत्रिकाएँ हिंदी भाषा एवं हिंदी-असमीया पत्रिकाएँ: उलूपी (संपादक- रविशंकर रवि), फोकस पूर्वोत्तर (संपादक- सुशील चौधरी), राष्ट्रसेवक (संपा. चित्र महंत) आदि।
असमिया भाषा की पत्रिकाएँ: असमिया प्रतिदिन, एकोनिर ज्योति (संपादक- बिपुल कुमार दिहिंगिया), बिसमय (संपादक- शशि फुकन), त्रिसुल (संपादक- तरुन फुकन), माया (संपादक- बितुपन बरुआ), गिश्वांतुर (संपादक- मुनिन काकोती) आदि।
अंग्रेजी और असमिया की पत्रिकाएँ- Urulti, Orundoi, Jonaki, आदि।
4. संप्रेषण की भाषा पर्यटक की भाषा: अपने देश की स्थानीय भाषा के साथ ही राष्ट्र भाषा और अन्य कुछेक भाषाएँ। संप्रेषण के दौरान सहज और स्वाभाविक भाषा का प्रयोग।
असम के पर्यटक गाइड की भाषा: आसमिया और अंग्रेजी के साथ कुछेक स्थानीय बोली। विभिन्न देशों के पर्यटकों के साथ संप्रेषण के दौरान पर्यटक गाइड लोग यांत्रिक और क्लिष्ट भाषा का प्रयोग करते हैं, जिससे पर्यटकों को भाषाई स्तर पर विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कभी-कभी इतिहास बोध न होने के कारण स्थान विशेष की मान्यताओं, विश्वासों, मतों और महत्ता को नहीं बता पाते हैं। इन सभी समस्याओं के आलोक में कुछ पर्यटक अपने देश से पर्यटक गाइडों को लेकर आते हैं।
संबंधित विभागों के कर्मचारियों की भाषा: मुख्यतः असमिया और अंग्रेजी। असम सांस्कृतिक विभाग और पर्यटन विभाग के कर्मचारियों की भाषा मुख्यतः अंग्रेजी और असमिया है, परंतु विभिन्न देशों के पर्यटकों को सूचना देते समय भाषा की जानकारी न होने के कारण यांत्रिक हो जाते हैं या किसी अन्य माध्यम का सहारा लेना पड़ता है। ऐसी दशा में पर्यटकों को भाषाई समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं।
स्थानीय लोगों की भाषा: संपर्क-भाषा असमिया। असम में मुख्य धारा के जन सामान्य के द्वारा असमिया, हिंदी और अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता है।
जनजाति, उप-जनजाति और अन्य पिछड़े लोगों के द्वारा स्थानीय भाषाओं और असमिया का प्रयोग किया जाता है। जहाँ एक तरफ, भाषा की समुचित जानकारी न होने के कारण सांस्कृतिक पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों के साथ इनका संप्रेषण न के बराबर होता है, वहीं दूसरी तरफ पर्यटक गाइडों को इनकी संस्कृति की जानकारी न होने के कारण पर्यटकों को उनके बारे में नहीं बता पाते हैं।
5. प्रशिक्षण का अभाव प्रशिक्षण केंद्रों में प्रशिक्षु पर्यटक गाइडों को कुछेक माह में ही भाषा में कुशलता का प्रमाण पत्र दे दिया जाता है। उन्हें प्रमाण पत्र मिलते ही वे पंजीकृत हो जाते हैं और पर्यटक गाइड का कार्य करने लगते हैं। इसके संबंध में उन्हें किसी अन्य परीक्षा या इंटर्नशिप की आवश्यकता नहीं होती है। पर्यटक गाइड के रूप में पंजीकृत होने के लिए उन्हें केवल स्थानीय भाषा जानने के साथ किसी एक भाषा में स्नातक और पर्यटन में डिप्लोमा की आवश्यकता होती है।
जब वे पर्यटन स्थलों पर पर्यटकों से संप्रेषण करते हैं तो कुशल न होने की दशा में संप्रेषण प्रक्रिया टूटने लगती है और पर्यटकों को निराश होना पड़ता है। वैसे भी असम में पंजीकृत पर्यटक गाइडों की संख्या काफी कम है।

उपर्युक्त सारणी को देखने से स्पष्ट है कि असम राज्य में सांस्कृतिक पर्यटन से संबंधित ज़्यादातर विज्ञापनों, पुस्तकों, पत्रिकाओं आदि की भाषा अंग्रेजी या असमिया है। यहाँ तक कि पर्यटन विभाग और संस्कृति विभाग से प्रकाशित वाली पुस्तकें ज़्यादातर अंग्रेजी भाषा में ही प्रकाशित होती हैं। उदाहरण के लिए ‘The Abode of Original’ सांस्कृतिक मामलों के मंत्रालय द्वारा प्रकाशित की गई है जो केवल अंग्रेजी में ही उपलब्ध है। इसी प्रकार Folk Toys of Assam को सांस्कृतिक मामलों के निदेशालय, गुवाहाटी द्वारा अंग्रेजी में ही प्रकाशित किया गया है। पर्यटन विभाग और इससे संबंधित अन्य एजेंसियों से प्रकाशित होने वाली पुस्तकें और पंपलेट्स अंग्रेजी या असमिया में हो प्रकाशित होते हैं। जैसे- Assam Travel Guide, Assam Hotel Guide, Red River Travel Agencies, Tourist Destination of Assam, Mystic Majuli, Madan Kamdev, Kamakhya Temple, और People, Culture and Cuisine of Assam आदि। असम राज्य संग्रहालय द्वारा प्रकाशित पुस्तकें और पंपलेट्स अंग्रेजी में ही प्रकाशित होते हैं, जैसे- Assam State Museum। सूचना और जन-संपर्क निदेशालय द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की भाषा अंग्रेजी ही है। जैसे- Culture Heritage of Assam, और Assam: A Handbook आदि। अन्य कुछ महत्वपूर्ण प्रकाशन की पुस्तकें जो सांस्कृतिक पर्यटन से संबंधित हैं की भाषा अंग्रेजी है। जैसे- Omsons Publication की Folklore in North East India, Culture and Religions of Assam. Kalpaz Publication की Assam: Its Heritage and Culture.

कुछेक महत्वपूर्ण पुस्तकें विभिन्न प्रकाशनों द्वारा हिंदी भाषा में प्रकाशित हैं। जैसे- सरोस प्रिंटिंग वर्कशॉप की बखिस्ठ सं. देवलाया, बीणा लाइब्रेरी की पुण्यभूमि कमाख्या, जैनेंद्र प्रेस की पर्यटन सिद्धांत और प्रबंधन तथा भारत में पर्यटन, आदि।

इसके साथ ही असम में प्रकाशित होने वाले समाचारपत्रों की भाषा ज़्यादातर या तो असमिया है या अंग्रेजी। इसलिए सांस्कृतिक पर्यटन से संबंधित सूचनाओं वाले विज्ञापन की भाषा भी या तो असमिया होती है या तो अंग्रेजी। असम में हिंदी भाषा में प्रकाशित होने वाले समाचारपत्रों में असम राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए और असम की संस्कृति, रीति-रिवाज और स्थान विशेष के महत्व को बताने और इतिहास बोध करने के लिए रविवारीय विशेषांक निकलते हैं। इनमें त्योहार विशेष की महत्ता, उसका इतिहास, उसके बारे में मान्यताएँ, साहित्य आदि से संबंधित आलेख होते हैं। इन समाचारपत्रों में दैनिक पूर्वोदय, द सेंटीनल, पूर्वांचल प्रहरी आदि प्रमुख हैं।

हिंदी में प्रकाशित होने वाले समाचारपत्रों की संख्या बहुत ही सीमित है। इसके साथ ही इनका नियमित पाठक वर्ग सीमित होने के कारण इनका वितरण भी सीमित है। ऐसी स्थिति में जब विभिन्न भाषाओं के भारत और बाहर के पर्यटक असम में सांस्कृतिक पर्यटन हेतु आते हैं, तो उन्हें भाषाई स्तर पर विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

संप्रेषण की भाषा के संदर्भ में अध्ययन से स्पष्ट होता है कि अधिकतर गाइडों की भाषा अंग्रेजी, असमिया, हिंदी और बंगाली है। ज़्यादातर गाइडों को क्षेत्रीय बोलियों का ज्ञान नहीं है। स्मरणीय है कि असम एक जनजातीय बहुल क्षेत्र है और जनजातियों की इन सांस्कृतिक पर्यटन स्थलों के प्रति अपनी मान्यताएँ, और विश्वास हैं। उनकी अस्थाओं, मान्यताओं और परंपराओं में बहुत से ऐसे शब्द हैं, जो असमिया में भी नहीं हैं। स्थानीय बोलियों की जानकारी के अभाव में गाइड उन्हीं शब्दों का प्रयोग कर छोड़ देते हैं और उनका निर्वचन नहीं करते हैं। ऐसी दशा में पर्यटक भ्रमित होते हैं और उनका रुझान असम के सांस्कृतिक पर्यटन स्थलों के प्रति कम होने लगता है। इन स्थितियों से बचाने के लिए कभी-कभी पर्यटक अपने साथ पर्यटक गाइड स्वयं लेकर आते हैं।

सुझाव

असम भारत का एक प्रमुख सांस्कृतिक पर्यटन स्थल है, जहाँ देश के विभिन्न राज्यों के साथ ही विश्व के अनेक देशों के पर्यटक भ्रमण करने आते हैं। यहाँ के मुख्य पर्यटक स्थलों में गुवाहाटी में कमाख्या देवी, वशिष्ठ आश्रम, कलाक्षेत्र और उबनंद, तेजपुर में अग्निगढ़, चित्रलेखा और मैदाम कामदेव, हांजू में दर्गा सरीफ़, माजुली जनपद और सिबसागर हैं। असम में जहाँ माजुली को सांस्कृतिक जनपद के नाम से जाना जाता है, वहीं सिबसागर को ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक केंद्र माना जाता है। इन सांस्कृतिक स्थलों के अपने ऐतिहासिक महत्व हैं और इनके प्रति लोगों के अपने विश्वास, मत और अस्थाएँ हैं, जिनका वे पालन करते हैं। ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि जब पर्यटक इन स्थलों पर विहार करने आएँ तो उन्हें समुचित सूचनाएँ प्राप्त हों और स्थान-विशेष, समारोह विशेष के संबंध में उनकी जिज्ञासाएँ अधूरी न रहें।

सांस्कृतिक पर्यटन स्थलों पर होने वाली भाषागत समस्याओं, गाइडों की कमी और असम के सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित सुझाव हैं-

  1. सांस्कृतिक स्थलों और कार्यक्रमों से संबंधित विज्ञापन यथा पंपलेट्स, समाचार पत्रों में दिये जाने वाले विज्ञापन, जगह-जगह पर समारोहों और उत्सवों से संबंधित होर्डिंग्स, ई-विज्ञापन आदि की भाषा असमिया और अंग्रेजी के अतिरिक्त अन्य विभिन्न भाषाओं में होने चाहिए जिससे पर्यटकों को होने वाले उत्सवों/समारोहों आदि के संदर्भ में जानकारी मिल सकें और वे उसमें हिस्सा लेकर लाभान्वित हो सकें।
  2. सांस्कृतिक उत्सवों/समारोहों और सांस्कृतिक महत्व के स्थलों की महत्ता से संबंधित पुस्तकों का अनुवाद अन्य भाषाओं में किया जाना चाहिए, जिससे कि लोग असम और उसकी संस्कृति के बारे में जान सकें, स्थान विशेष की महत्ता और उसके पीछे की मान्यताओं को जान और समझ सकें। इसके लिए संबंधित विभाग जैसे पर्यटन विभाग, सांस्कृतिक मामलों से संबंधित निदेशालय और जनसंपर्क सूचना विभाग आदि द्वारा पहल करनी चाहिए। इसके साथ ही अन्य प्रकाशनों को भी इसमें अपनी भूमिका समझकर निभानी चाहिए। सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा देने की दृष्टि से अनुवाद के लिए विषयों का चयन प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए, जैसे-
  • पौराणिक एवं धार्मिक स्थलों की जानकारी।
  • ऐतिहासिक स्थानों की जानकारी।
  • सामाजिक और लोकजीवन।
  • उत्सव, त्योहार, नृत्य, संगीत और खेल।
  • स्थानीय उत्पाद एवं कला कौशल।
  1. संप्रेषण की भाषा पर ध्यान देना चाहिए। संबंधित विभाग के कर्मचारियों को विभिन्न भाषाओं में प्रशिक्षण लेना चाहिए, जिससे कि अनुवाद और निर्वचन माध्यमों का अधिकतम उपयोग किया जा सके और पर्यटकों को कोई भी समस्या न हो। इससे असम राजी में सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
  2. प्रशिक्षण केंद्रों में दिए जा रहे प्रशिक्षण पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। प्रशिक्षण के नाम पर केवल खानापूर्ति नहीं होनी चाहिए, बल्कि पर्यटक गाइड को एकाधिक भाषाओं से संबंध रखने वाले पर्यटकों से संवाद विकसित करने की कला में कुशल बनाना चाहिए।
  3. पर्यटक गाइडों की संख्या में बढ़ोत्तरी करने के लिए वहाँ के स्थानीय लोगों को संबंधित विभागों द्वारा प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। इससे यह सुविधा रहेगी कि वे स्थान विशेष, कार्यक्रम और समारोहों के पीछे अपनी मान्यताओं, विश्वासों और आस्थाओं को बेहतर ढंग से बता पाएँगे। इस रूप में वे अन्य बेहतर निर्वचक सिद्ध होंगे।
  4. इसके साथ ही विश्वविद्यालयों में अनुवाद और निर्वचन से संबंधित पाठ्यक्रम का निर्माण कर उसे लागू किया जाना चाहिए। विश्वविद्यालयों को स्थानीय लोगों को विशेष रूप से प्रशिक्षित करना चाहिए। गाइड प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाषा सिखाने के साथ ही अनुवाद और निर्वचन को विशेष महत्व दिया जाना चाहिए। इससे असम के समाज और संस्कृति की जानकारी एक से अधिक भाषाओं में उपलब्ध कराई जा सकेगी तथा पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।

संदर्भ-सूची

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