भारतीय समाज में दिव्यांगों का महत्व

अनिल कुमार पाण्डेय

मेवाड़ वि.वि. चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)

शोध सार:

भारतीय संस्कृति अनादि काल से ही मानवतापूर्ण रही है। जहाँ पर ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’’ का आदर्शवाक्य जपा जाता था क्योंकि इस परम पवित्र भूमि पर सबको समाप रूप से जीने और रहने का अधिकार है। चाहे वह किसी धर्म-जाति वर्ग या स्तर का हो। मानवतापूर्ण संस्कृति में सभी समान है दिव्यांग हो या अनाथ यह सबको साथ लेकर चलने वाली संस्कृति है। क्योंकि अनेक दिव्यांगों और अनाथों ने देश तथा समाज को नई दिशा देकर भारत ही नही दुनिया को रास्ता दिखाया है इसलिए सभी को सम्मान दें चाहे वह अनाथ हो या दिव्यांग प्रतिभा और प्रखरता सबमें पाई जाती है चाहे वह जिस रूप में हो।

बीज शब्द: दिव्यांग, लोकतंत्र, संस्कृति, प्रतिभा

शोध विस्तार:

भारतीय लोकतंत्र में दिव्यांगों की सामाजिक दशा

तन्त्र और समाज में त्रासित दिव्यांग

दिव्यांगता कोई अभिशाप या पूर्व जन्मों की सजा या परिवार के पापों का शाप नही वरन् शरीरिक अंगों में कुछ कमी का कारण है जो कि ज्यादातर लोगों में होती है। कुछ कमियों का प्रभाव समझ में नही आता तथा कुछ कमियाँ हमारे जीवन को प्रभावित कर देती है किसी का एक अंग बेकार होने से वो निःशक्त नही हो जाता है।

दिव्यांगता क्या है? निःशक्त व्यक्ति अधिनियम 1995 के अनुसार चिकित्सीय दृष्टि से किसी प्रकार की शरीरिक कमी का प्रतिशत 40 से अधिक होता है तो वह दिव्यांगता की श्रेणी में आता है।

दिव्यांगता ऐसा विषय है जिसके बारे में समाज और व्यक्ति कभी गंभीरता से नहीं सोचते। क्या हमने सोचा होगा कि कोई छात्र या छात्रा अपने पिता के कंधे पर बैठकर भाई के साथ साईकिल चलाकर ज्ञान लेने स्कूल जाता है किन्तु सीढ़ियों पर ही रूक जाता है क्योंकि रैम्प नहीं है। वो कैसे अपनी व्हील चेयर की सीढ़ियों पर चढ़ाये।

उसके मन में एक कसक उठती है कि क्या उसके लिये ज्ञान के दरवाजे बन्द हैं? क्या शिक्षण संस्था में उसके लिये जगह नहीं मिल सकती? शौचालय तो दूर उसके लिये एक रैम्प वाला शिक्षण कक्ष भी नहीं है। जहाँ वह स्वाभिमान के साथ वह अपनी व्हील चेयर चलाकर ले जा सके एवं ज्ञान प्राप्त कर सके।

कोई दफ्तर, बैंक, ए.टी.एम., पोस्ट ऑफिस, पुलिस थाना कचेहरी, नहीं है जहां पर दिव्यांगों की सुविधाएँ उपलब्ध हों। सामान्य दिव्यांगो की तो छोड़िए यहाँ के दिव्यांग कर्मचारियों को भी कोई सुविधाएं नहीं है। अगर दिव्यांगों को बराबर का अधिकार है तो नजर कहाँ आता है?

ट्रेन की बात कर लेते हैं क्या ट्रेनों में दिव्यांग अकेले यात्रा कर सकते है। यहाँ तक कि टेªनों में चढ़ने के लिये भी दिव्यांगों को दूसरों की सहायता चाहिए। उनके लिये कई मूलभूत सुविधायें नही है किसी तरह डिब्बे में चढ़ भी जाये तो ट्रेनों में दिव्यांगों के लिये शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है। घर में बैठकर सभी सामान्य लोग ऑनलाइन टिकट की बुकिंग कर सकते है लेकिन दिव्यांगों के लिये प्लेटफार्म पर लाईन में लगकर ही टिकट लेनी पड़ती है।

मतदान केन्द्रों पर भी दिव्यांग लोगो को कोई अलग से सुविधा नहीं दी जाती है अधिकांश मतदान केन्द्रों पर रैम्प न होने के कारण दिव्यांग मताधिकार से वंचित हो जाते हैं यह तंत्र एवं समाज के लिये सोचनीय और शर्मनाक बात है।

हर साल दिव्यांगों के लिये भारी सहायता राशि की घोषणा बजट में की जाती है। कागज पर योजनाएँ एवं सुविधाएँ उकेरी जाती हैं लेकिन क्या अभी तक कोई भी तंत्र उन्हें उनके मौलिक अधिकार एवं सुविधाएँ दे सका है। ताकि वे स्वाभिमान के साथ स्कूल-कॉलेज, दफ्तर या सार्वजनिक स्थल पर जा सकें। उसपर शायद कोई नहीं दे सकता है।

हमारा समाज तमाशे का बड़ा शौकिन है जहाँ हटकर कुछ देखा कि तमाशबीन बन गये। दिव्यांगता भी हमारे समाज में तमाशा है। थोथी संवेदनाओं का केन्द्र है। विकलांगों से सभी सहानुभूति रखते हैं। लेकिन उन्हें दोयम दर्जे का व्यक्ति मानते हैं। बेचारे, पंगु, निर्बल, निःशक्त ऐसे ही न जाने कितने संवेदना सूचन शब्दों से लोग अपने को श्रेष्ठ कर लेते हैं।

कितनी ही सरकारी योजनाएँ विभाग बन गये लेकिन क्या दिव्यांगों को हम सबल बना पाये है? क्या उनको राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़कर राष्ट्र निर्माण में उनका योगदान ले पाये है? शायद नही? इसके जिम्मेवार हम सभी है। हम एक भीड़ है जो तमाशा देखती है। अभी इंसान नही बन पाये हैं क्योंकि इंसान में संवदेनाए होती है।

दिव्यांगों के अधिकारों को आवाज देता ‘‘संयुक्त राष्ट्र दिव्यांगता समझौता’’ विश्वव्यापी मानवाधिकार समझौता है। यह समझौता स्पष्ट रूप से दिव्यांगों के अधिकारों एवं विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा निर्बाध रूप से विकलांगों के पुनर्वास एवं बेहतर सुविधा की पैरवी करता है।

भारतीय संसद में दिव्यांगों के पुनर्वास एवं उन्हें देश की मुख्य धारा से जोड़ने के लिये दिव्यांग व्यक्ति समाज अवसर अधिकारों का संरक्षण, पूर्ण भागीदारी अधिनियन 1995 दिव्यांगता अधिनियम पारित किया गया। स्वाभाविक तौर पर आसक्त लोगों के अधिकारों को प्रतिपादित करते हुये भारत में संयुक्त राष्ट्र संघ के Rights of persons with disabilities (CRPD) कन्वेंशन में कही गयी बातों को 2007 में अंगीकार किया एवं दिव्यांग व्यक्तियों के लिये बने अधिनियम 1995 संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पारित कन्वेन्शन जिस पर 2008 में अमल शुरू हुआ। के आधार पर बदलों की बात कही।

‘‘दिव्यांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों संरक्षण पूर्ण भारीदारी अधिनियम 1995’’ के अनुसार निःशक्त व्यक्तियों के निम्न अधिकार हैं।

  1. 1. अदिव्यांग व्यक्तियों की तरह समान अवसर का अधिकार।
  2. 2. जीवन के कार्यों में सामान्य व्यक्ति के बराबर पूर्ण भागीदारी का अधिकार।
  3. 3. दिव्यांग जनों को कानूनी मान्यता का अधिकार।
  4. 4. दिव्यांग जनों को कानूनी सुरक्षा का अधिकार।
  5. 5. दिव्यांग जनों की देखभाल, पुनर्वास एवं जीवन की मुख्यधारा में शामिल करने के लिये प्राधिकारणों का यह दायित्व है कि वे प्रावधानों के अन्तर्गत दिव्यांगजनों के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन करें।
  6. 6. केन्द्र एवं राज्य सरकार का यह दायित्व है कि वे दिव्यांगता को रोकने के लिये तमाम संसाधनों को जुटाये ताकि दिव्यांगता की रोकथाम हो सके।
  7. 7. प्रत्येक दिव्यांग बच्चे को 18 वर्ष तक निःशुल्क शिक्षा का अधिकार है। सरकार को विशेष शिक्षा प्रदान करने वाले स्कूलों क स्थापना करनी चाहिए एवं दिव्यांग बच्चों को प्रशिक्षण के अवसर मुहैया करानी चाहिए।
  8. 8. पाँचवी तक पढ़ाई कर चुके बच्चे मुफ्त स्कूलों एवं विश्वविद्यालयों में अपनी शिक्षा जारी रख सकेंगे एवं उन्हें विशेष पुस्तकें व निःशुल्क उपकरण प्राप्त करने का अधिकार है।
  9. 9. सरकार का कर्तव्य है कि वो दिव्यांग छात्रों के लिये विशेष शिक्षा संबंधी योजनाएँ, पाठ्यक्रम एवं शिक्षक प्रशिक्षण के स्थान स्थापित करें।
  10. 10. सभी श्रेणियों के दिव्यांगों को सरकारी नौकरियों के पदों में आरक्षण होना चाहिए।
  11. 11. दिव्यांजनों को रोजगार देने के लिये विशेष रोजगार केन्द्र होने चाहिए।
  12. 12. आवास पुनर्वास के लिये रियायती दरों में जमीन का आवंटन निःशक्त लोगों के लिये होना चाहिए।
  13. 13. दिव्यांगों के लिये विशेष परिवहन सुविधाओं का विस्तार किया जाना चाहिए एवं यात्रा में विशेष रियायती छूट देनी चाहिए।
  14. 14. गंभीर दिव्यांग व्यक्ति के संस्थानों की मान्यता निर्धारित होंगी।
  15. 15. मुख्य आयुक्त एवं राज्य आयुक्त दिव्यांग व्यक्ति के अधिकारों से सम्बन्धित मामलों की जाँच करेंगे।
  16. 16. गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर स्थानीय प्राधिकरण दिव्यांग व्यक्ति के लिये बीमा योजनाएँ बेरोजगारी भत्ता की योजना बनायेंगे।
  17. 17. छलपूर्वक तरीके से दिव्यांग व्यक्तियों के लाभ लेने वालों को दो वर्ष की सजा या 20,000 रूपये का अर्थदंड लगेगा।

राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण के 58 चक्रों के अनुसार देश में लगभग 1,85,00000 दिव्यांग हैं। जबकि रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की ओर से जारी रिपोर्ट में देश में दिव्यांगों की संख्या दो करोड़ 68 लाख है। 75 प्रतिशत दिव्यांग ग्रामीण क्षेत्रों में हैं 49 प्रतिशत दिव्यांग साक्षर है एवं 34 प्रतिशत दिव्यांग रोजगार प्राप्त हैं।

मध्य प्रदेश में कुल 11 लाख 31 हजार 405 लोग दिव्यांग हैं।

  1. 1. 4,12,404 लोग दिव्यांग बेरोजगार हैं।
  2. 2. 2,87,052 दिव्यांग दैनिक रूप से आय अर्जित कर जीवन यापन करते हैं।
  3. 3. 2,81,670 दिव्यांग स्वयं का धंधा करते हैं।
  4. 4. 1 हजार रूपये से कम कमाने वाले दिव्यांगों की संख्या 5,05,472 है।
  5. 5. सरकारी क्षेत्र में केवल 15,955 दिव्यांग कार्य करते हैं।
  6. 6. प्रदेश में कुल सर्वेक्षित दिव्यांग जनसंख्या के 80 प्रतिशत यानि 8,89,755 दिव्यांग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते है।
  7. 7. केवल 19,667 दिव्यांग व्यक्तियों को स्वरोजगार हेतु सरकारी सहायता मिलती है।
  8. 8. सिर्फ 66,962 दिव्यांगों को ही सामाजिक सुरक्षा पेंशन का लाभ मिल सकता है।

सेटर फार इंटरनेट एण्ड सोसायटी द्वारा कुछ वेबसाइड का सर्वेक्षण कराया गया कि कितनी वेबसाइटों की पहुँच दिव्यांगों तक है इनमें से 95 प्रतिशत वेबसाइट विकलांगों की पहुँच से बाहर है जिसमें चुनाव आयोग की वेबसाइट भी शामिल है। ये आंकड़े दर्शाते है कि ये स्थिति कितनी भयावह है। समाज एवं तंत्र दिव्यांगों के प्रति कितना असंवेदनशील है। शिक्षा एवं रोजगार ही दिव्यांगता से लड़ने के मुख्य अस्त्र हैं किन्तु इन दोनों की स्थिति इतनी दयनीय है कि दिव्यांग व्यक्तियों का आत्मबल दम तोड़ देता हैं। फिलहाल करीब 40 कम्पनियाँ दिव्यांगों को नौकरयाँ दे रही हैं। गैर सरकारी संस्थानों की यह पहल निश्चित रूप से दिव्यांगों के जीवन में नये रंग भर सकती हैं।

            आज आवश्यकता है कि दिव्यांगों के समान अधिकार देने, सम्मानपूर्वक व्यवहार करने एवं उन्हें जीवन की मुख्य धारा से जोड़ने कि ताकि वे देश के निर्माण में अपना योगदान दे सकें। उन्हें दया से ज्यादा हमारे साथ एवं संवेदनाओं की जरूरत है।

संदर्भ

  1. 1. दिव्यांगता अधिनियम 1995।
  2. 2. संयुक्त राष्ट्र संघ दिव्यांगता अधिनियम 2000।
  3. 3. भारतीय जनगणना 2011।
  4. 4. सेंटर फार इंटरनेट सोसायटी।
  5. 5. रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इण्डिया की रिपोर्ट के अनुसार।
  6. 6. राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण।

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