दलित साहित्य का आरंभ ही दलित आत्मकथाओं से हुआ है। तुलसीराम ने ‘मुर्दहिया’ में अपने वैयक्तिक जीवन की पीड़ा, दुख, दर्द के साथ-साथ लोकजीवन में व्याप्त अंधश्रद्धा, अपशकुन, देवी देवता, भूत-प्रेत का जीवंत वर्णन किया है। दलित लोकजीवन का सौंदर्य ‘मुर्दहिया’ में साकार हो उठा है। इसलिए दलित आत्मकथाओं में तुलसीराम कृत ‘मुर्दहिया’ विशिष्ट स्थान रखती है।
मुर्दहिया
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