इस शोध-पत्र में प्रमुख हिंदी लेखिका हीरादेवी चतुर्वेदी की एकांकी संग्रह ‘रंगीन पर्दा’ में उठाये गए विभिन्न समस्याओं विशेष रूप से स्त्री-प्रश्नों का मूल्यांकन करने का प्रयास किया गया है। ‘रंगीन पर्दा’ इनकी एकांकियों का संग्रह है, जो 1952 ई. प्रकाशित हुआ था
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यथार्थ के आईने में स्त्री-मधुमिता ओझा
स्त्री की अपनी इच्छाएं, जीवन के प्रति उसके अपने एप्रोच को तवज्जु दिए बगैर न तो स्त्री को समझा जा सकता है, न जेंडर समानता को, न स्त्री के प्रेम को और न ही स्त्री-विमर्श को। स्त्री-विमर्श को समझने के लिए स्त्री की ऑटोनोमी को समझना अनिवार्य है। यही कारण है कि लेखिका स्त्री को उसकी स्वायत्तता के प्रति जागरूक करती हैं।
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