समकालीन कविता में सामाजिक बोध को समय की माँगों के अनुरूप उभरते हुए देखा जा सकता है जिसने मनुष्य को उसके दायित्वों के प्रति बोध कराया। समकालीन कविता की प्रमुख विशेषता जनपक्षधरता रही है।
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आवां : विकलांगता और उसका प्रभाव
सुप्रसिद्ध लेखिका चित्रा मुद्गल का आवां उपन्यास समाज के इस तबके में स्त्री की स्थिति और उसके शोषण के विभिन्न स्तरों को उजागर करता है कामगार अघाड़ी के महासचिव देवीशंकर पांडेय की बेटी नमिता के जीवन संघर्ष के साथ ही समाज के विभिन्न वर्गों के स्त्रियों का जीवन संघर्ष इस उपन्यास की कथानक के रेशे-रेशे में मौजूद है |
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समकालीन साहित्य में आदिवासी समाज और संस्कृति का स्वरूप-चंदा
आदिवासी संस्कृति की प्राचीनता की बात करें तो यह आर्यों से पुरानी हैं जब आर्य भारत आए तो उन्होंने यहाँ के मूलनिवासी को खदेड़ दिया, आदिवासियों ने भी इसका प्रतिरोध किया, किन्तु पराजित होने के उपरांत भी उन्होंने आर्यों की अधीनता न स्वीकारते हुए घने जंगलों में शरण ली और वहीं अपनी सभ्यता और संस्कृति को जीवित रखा, बचाए रखा।
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यथार्थ के आईने में स्त्री-मधुमिता ओझा
स्त्री की अपनी इच्छाएं, जीवन के प्रति उसके अपने एप्रोच को तवज्जु दिए बगैर न तो स्त्री को समझा जा सकता है, न जेंडर समानता को, न स्त्री के प्रेम को और न ही स्त्री-विमर्श को। स्त्री-विमर्श को समझने के लिए स्त्री की ऑटोनोमी को समझना अनिवार्य है। यही कारण है कि लेखिका स्त्री को उसकी स्वायत्तता के प्रति जागरूक करती हैं।
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