समकालीन कविता में सामाजिक बोध को समय की माँगों के अनुरूप उभरते हुए देखा जा सकता है जिसने मनुष्य को उसके दायित्वों के प्रति बोध कराया। समकालीन कविता की प्रमुख विशेषता जनपक्षधरता रही है।
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समकालीन साहित्य में आदिवासी समाज और संस्कृति का स्वरूप-चंदा
आदिवासी संस्कृति की प्राचीनता की बात करें तो यह आर्यों से पुरानी हैं जब आर्य भारत आए तो उन्होंने यहाँ के मूलनिवासी को खदेड़ दिया, आदिवासियों ने भी इसका प्रतिरोध किया, किन्तु पराजित होने के उपरांत भी उन्होंने आर्यों की अधीनता न स्वीकारते हुए घने जंगलों में शरण ली और वहीं अपनी सभ्यता और संस्कृति को जीवित रखा, बचाए रखा।
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सत्ता, संस्कृति और स्त्री की स्वाधीनता-डॉ. मिथिलेश कुमारी
स्त्री की आज़ादी का प्रश्न समाज से कटा हुआ नहीं है। यह जितना स्त्रियों के सहज और सरल जीवन-यापन के लिए ज़रूरी है उतना ही सम्पूर्ण समाज के लिए भी। इस शोध-पत्र में सत्ता और संस्कृति के अंतर्संबंधों को स्त्री आज़ादी के परिप्रेक्ष्य में देखने की कोशिश की गयी है।
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